सोमवार, 23 मार्च 2015

भ्रष्टाचार चलेगा तो बनाना रिपब्लिक बनेगा


कहने वाले  कह गए  हैं कि राजनीति एक गंदी चीज है ,इससे बचो पर तार्किक पूछते  रहे हैं कि कोई इससे बचे तो आखिर  क्यों  सबको यह बात अच्छी तरह मालूम है कि जो गन्दा है वही धंधा है धंधा वही जिसमें मुनाफा  हो धंधे से भी भला कोई आँख चुराता है धंधे से जो बचता है वह कर्महीन कहलाता है सकल पदारथ है जग माहीं, करमहीन नर पावत नाहींभ्रष्टाचार भी एक धंधा है धंधे का पूरक नहीं समानार्थी अब मौनी बाबा कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार का अधिक प्रचार न करो उसे उसके हाल पर छोड़  दो, कोई निरर्थक नाम न दो जीवन के इस गूढ़ रहस्य को उजागर करने के लिए ही  उन्होंने अपना दिव्य मौन तोड़ा है
आप मानें या न मानें लेकिन सत्य यही है कि भ्रष्टाचार अपने आप में  एक ऐसा सुपर ब्रांड है जो बिना किसी मार्केटिंग की रणनीति व प्रचार के चलता है ऐसा बिरवा है जो बिना किसी खाद पानी हवा के पनपता है इसकी जड़ें धरती में नहीं होती अमरबेल के तरह हर  राजनीतिक व्यवस्था में खूब हरियाता है  इससे प्राप्त वैभव ऐसा कि देखने वाले देखते रह जाएँ अधिक देखादाखी करने वालों की ऑंखें चुंधिया जाएँ भ्रष्टाचार के शलाका पुरुषों की  तूती बिना फूंके स्वत: बजने लगती है ऐसे सुदामाओं की सत्तानशीनों से बाल मित्रता सामाज खुद अविष्कृत कर लेता है
भ्रष्टाचार दैवीय गुणों से संपन्न एक ऐसा अचार है जिसे चखने वाला तो बौराता ही है ,पर जिसे मौका नहीं मिल पाता वह भी  सर धुनता है इसमें कनक- कनक से अधिक मादकता होती है इसके समक्ष सारी दुनियावी आचार सहिंता बेदम हो जाती हैं और पारंपरिक जीवन मूल्यों के भावार्थ बदल जाते हैं भ्रष्टाचार अब एक सहज स्वीकार्य संज्ञा है, क्रिया और विशेषण भी इसका स्वरुप वातावरण में घुली नाईट्रोजन जैसा है जिसका होना आदमी के जिन्दा रहने के लिए आक्सीजन की ही तरह अपरिहार्य है इसके महत्व को मनीषियों ने  समझ तो युगों पहले लिया  था पर लोकलाज से इसे सामाजिक स्वीकार्य नहीं मिल पाया  ।लोग मन ही मन इसके प्रति  आकर्षित होते रहे पर किसी नदीदे की तरह मुड़िया हिलाते रहे
प्राचीन इतिहास के पन्नों में राजे -रजवाड़ों ,सामंतों ,भांडों ,दरबारियों और  निष्णात ऐय्यारों के भ्रष्टाचार की तमाम ऐसी गौरव गाथायें मौजूद हैं ,जिनका गान आज भी पूर्ण धार्मिक विधि विधान से होता है यह अलग बात है कि इन गाथाओं को भ्रष्टाचार के दस्तावेज़ के रूप में चिन्हित करने हम  डरते  हैं ऐतिहासिक साक्ष्य चाहे जितने निर्दोष हों पर   उनकी मनचाही  व्याख्याएं गढ़ ही ली जाती  हैं  
हमारे मौनी बाबा का  कुछ भी बोलना हमेशा एक बड़ी बात होती है उनका कहना है कि भ्रष्टाचार को लेकर लोग व्यर्थ की चिल्लपों न मचाएं वह मितभाषी हैं उनके थोड़े कहे को ही पर्याप्त समझा जाये भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार ही रहने दें ,बेकार का वितंडा न खड़ा करें इसका अतिशय प्रचार सारी दुनिया में हमारी छवि को धूमिल करता है भ्रष्टाचार वेश्यावृत्ति की तरह दुनिया का प्राचीनतम धंधा है और धंधा चाहे कितना भी गन्दा क्यों न हो ,वह यदि मुनाफे का है तो चलते रहना चाहिए देश की विकासदर के निरंतर  गिरते  ग्राफ को थामने के लिए इसका चलना व्यापक राष्ट्रहित और राजनेताओं के व्यापक हित में है भ्रष्टाचार चलेगा तभी तो देश सही अर्थों में  बनाना रिपब्लिकबनेगा  

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